जिंदगी के पल कभी कभी सपना लगता है ,
पहचाने हुए चेहरेसे भी साया ज्यादह अपना लगता है ||
इत्तेफ़ाक़ कहूं या मान लूँ कहीं भ्रम इसे ,
सपनोंसे गहरा वोह सपना जो सच्चा लगता है ||
ठहरता हुआ पल में मन ठहर गया जैसे ,
कहा अब चल तो चलनेसे इंकार कर दिआ तभी ,
कहा तू जा और मैं यहाँ रुक जायुं जरा ,
बस आब ये ठहरना अब हमें अच्छा लगता है ||
विजया
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