Friday 6 February 2015

* भवा-पागला *

गोपाल छेत्री जी से मेरी पहली मुलाक़ात माधव-मंदिर पाठबाड़ी में हुई ! वह पाठ के साथ भवा-पगला नाम्नी एक बंगाली काली-साधक एवं लोकप्रिय गीतिकार के द्वारा लिखे गए हज़ारो भजनमेसे कुछ भजन भी वहां माधव जीउ के चरण में पेश किए थे ||

भवा-पागला के गान के सरल शब्द में सर्बोच्च-ज्ञान अनायास बिस्तृत रहती है | बंगला के बहोत नामी संगीत बैंड भी भवा के गाना को गाते हैं | उसदिन वह गान , उनके मीठा शब्दोंमें प्रवचन और पाठ और एक दीदी जिनके गायकी भी मधुर थी , दिलको छु गयी |

उन्हें हम पहलेसे कुछ कुछ पहचानते थे ;
गुरूजी के साथ स्वामी विवेकानंद जी के कोलकातास्थित घरमें विश्व-भातृत्व-मार्च के दोहरान उनसेभी स्वामीजी के मूर्ती में
पुष्पप्रदान-कार्यक्रम में उन्हेभी देखा था | फिर अगला वर्ष 'भी-बी-आई लॉन्चिंग' और दक्षिणेश्वर टेम्पलमें कुछ प्रोग्रम् के दोहरान ,,, और फिर वहलोग एकबार हमारे खरदह श्यामसुन्दर मंदिर में भी भजन-पाठ किए थे !

इसबार माघी पूर्णिमा के दिन इत्तेफ़ाक़ से हम दीघा आये थे | पूनम के शाम सबके साथ बाजार घूमते 
समय अचानक ही  हरबोला मंदिर में जानेकी इच्छा हुई | दीघा आनेकी तयारी के समयसेही ये इच्छा 
आई थी मनमे .... माँ भवा के जीवन थे जो .... 

लोगोंसे पूछते हुए कुछ ही देरमें पैदल चलकर हम सब मंदिर पहुंचे | कोई जैसे
धकेलकर मुझे लेकर जा रहे हैं ऐसा जूनून और जल्दी से चल रही थी मैं ...भवा , गोपाल क्षेत्रीजी , वह दीदी , माधवबाड़ी चलते चलते सबको सुनाते हुए आगे बढ़ रही थी मैं |घरके लोग मेरा स्वभाव जानते हैं इसलिए वहलोग बिना अचम्भा मेरे साथ साथ  चल रहे थे | मंदिर थोड़ी दूर में थी .... कहानी सुनते सुनाते हमारे चलना सहज हो रहा था ....
थोड़ी देर बाद हम सब मंदिर पहोच गए | भवा की काली माँ की आरती हो रही थी | हम सब आरती देखा , माँ के और भवा के दर्शन हुई और चरणामृत और  प्रसाद मिला |अचानक ही किसीको देखा हमने वहां और हमें बड़ी अचरज हुई .... 

क्षेत्रीजी जो कोलकाता में रहते हैं - सामने खड़े थे | प्रणाम और कुशल समाचार के बाद मैंने उन्हें पूछा "आप इस समय दीघा में कैसे ? " फिर वह मुझे मंदिर कार्यालय लेकर आये  और बताया "इसी दिन उनका ये उत्सव हर साल होता है |

पर और भी कुछ बाकी है कहनेकी !! 

वह दीदी , उसदिन माधव बाड़ी में क्षेत्रीजी के साथ और जिन जिनसे मुलाकात हुई थी वह सारे थे वहां ||
दीदी की एक ऑपरेशन में बाकशक्ति चले गए थे - गुरु के ऊपर अनंत बिश्वास और भक्ति ने फिरसे उन्हें संगीत और सुर के जगत में लौटा लाया ..... माधवबाड़ी में पहली मुलाक़ात के दोहरान दिल ये बातें सुन्नकर रो पड़ा था ,  इच्छा हुई थी एकबार गले लगाकर उन्हें कहूँ "हम सब आपके साथ हैं " पर संकोच आया था ---- पर इसबार यहाँ हमें देखकर वह हमें गलेसे लगाली | भवा का याद और संगीत से प्रेम उनके बहती हुई आंसूं की धारा के संग संग बह रही थी .... गुरु चाहे कोई भी हो , भक्त की सच्ची भक्ति तो आखिर एकहि जगह पहुचती है न ?? !! 

भवा जिस चारपाई पर बिराजते थे , मेरे हाथ पकरकर वहां ले आई , छूकर बोली "यहाँ रहते थे भवा ....यहाँ ... आजभी हैं यहाँ ....कहीं नहीं जा सकते आपने माँ को छोड़कर वह .... कितने गाने गाते थे , सरे इस माँ के लिए | जो नहीं कही - उनके आंसूं कह गया .... 

पूर्णिमा खुले आसमान और सत्संगीओन के साथ , भवा के मंदिर में उनके काली माँ के सामने खड़े ,एकपल भी नहीं लगा - ये मुलाक़ात दूसरी दफा ही हुई , कितने जन्मोसे किसीके प्रेम ने हम सरे ऐसेही  हसते रोते नाचते गाते चलते ठहरते आ रहे हैं ... न जाने कितने बार एक दूसरेका हथेली पकडे एकहि के लिए बहते चल रहे हैं ... 

अचानक याद आया - गुरूजी को इसी उत्सव में बुलाना चाहते थे गोपाल क्षेत्री जी ||

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